संत, परमात्मा और कवि कबीरदास समाज में फैली कुरोतियों को दूर किया ,जीवनी -

कबीरदास जी सादा जीवन जीने में यकीन रखते थे वे अहिंसा, सत्य, सदाचार गुणों के प्रशंसक थे।
कबीरदास मध्यकालीन (भक्ति काल) भारत के एक प्रसिद्ध संत कवि और समाज सुधारक थे। संत और कवि कबीरदास जी  को कुछ लोग भगवान मानते है।  कुछ लोगो का कहना  है की ये भगवान का औतार थे। संत कबीर  जी भी  परमात्मा  को निराकार माना है।  कबीरदास जी की भूमिका भक्ति आन्दोलन में इसलिए और प्रमुख हो जाती है क्योंकि इन्होने हिन्दू धर्म में जाती पाती के भेदभाव का विरोध तो किया ही| उनकी मुख्य भाषा सधुक्कड़ी थी लेकिन इनके दोहों और पदों में हिंदी भाषा की सभी मुख्य बोली की झलक दिखलाई पड़ती है। इनकी रचनाओं में ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी हरयाणवी और हिंदी खड़ी बोली की प्रचुरता थी। कबीर भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा से प्रभावित थे. कबीर का प्रभाव सिर्फ, प्रेम और मानवता के धागे से हिन्दू, इस्लाम और सिख तीनों धर्मों में मिलता हैं कबीर दास के मानने वालों में सभी धर्म के लोग थे।
कबीर दास जी कहते हैं :-
“जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान
कबीर दास जी कहते हैं जाती और धर्म में क्या रखा है, साधू (सज्जन) के ज्ञान का मोल है, जैसे तलवार का मूल्य होता है न की उसकी म्यान का।
जानकारी (Information) :-
नाम - संत कबीरदास
जन्म (Birth)- 1440 ईस्वी
मृत्यु (Death) -1518 ईस्वी
जन्म स्थान - लहरतारा ताल काशी
पिता का नाम - नीरू जुलाहे
माता - नीमा
गुरु -  गुरु रामानंद जी
पत्नी - लोई
पुत्र - कमाल
पुत्री - कमाली
जाति - जुलाहे
भाषा-  सधुक्कड़ी (मूल भाषा) ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी
मुख्य रचनाएं - साखी, रमैनी, सबद , जन्म बोध ,निर्भय ज्ञान, अठपहरा,अमर मूल,काया पंजी,कबीर की वाणी,कबीर अष्टक,अलिफ़ नामा, मुहम्मद बोध,सननामा,राम रक्षा,राम सार,रेखता,विचार माला,विवेक सागर,शब्दावली
म्रत्यु - 1518
म्रत्यु स्थान - मगहर, उत्तर प्रदेश
कबीर का जन्म :-
कबीर का जन्म कब और कहाँ हुआ था इसके बारे में इतिहासकार इस पर अपनी अलग अलग राय रखते हैं|कबीर के जन्म स्थान के बारे में तीन मत सामने आते हैं मगहर, काशी और आजमगढ़ का बेलहरा गाँव।
कुछ इतिहासकार इस बारे में यकीन रखते हैं कि कबीर का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था जीवन समय 1398 – 1448 था और कुछ 1440-1518 बताते हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार कबीर का जन्म 1440 ईसवी को गरीब विधवा ब्राह्मणी के यहाँ हुआ था। जिसे ऋषि रामानंद जी ने भूलवश पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। विधवा ब्राह्मणी ने संसार की लोक-लाज के कारण नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास छोड़ दिया था। शायद इसी कारण शायद कबीर सांसारिक परम्पराओं को कोसते नजर आते थे।
एक कथा के अनुसार कबीर का पालन-पोषण नीरू और नीमा के यहाँ मुस्लिम परिवार में हुआ। नीरू को यह बच्चा लहरतारा ताल के पास मिला था। कबीर के माता- पिता कौन थे इसके बारे में एक निश्चित राय नहीं हैं।
कबीर की शिक्षा :-कबीर का पालन-पोषण बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। कबीर की शिक्षा के बारे में यहाँ कहा जाता हैं कि कबीर को पढने-लिखने की रूचि नहीं थी। इसी कारण कबीर कभी किताबी शिक्षा नहीं ले सके। उस दौरान रामानंद जी काशी के प्रसिद्द विद्वान और पंडित थे कुछ घटना के बाद रामानंद जी ने कबीर को अपना शिष्य बना लिया।
कबीर दास का धर्म :-कबीर दास धर्मं से न हिन्दू हैं न मुसलमान. कबीर दास जी धार्मिक रीति रिवाजों के काफी निंदक रहे हैं। उन्होंने धर्म के नाम पर चल रही कुप्रथाओं का भी विरोध किया हैं। कबीर दास का जन्म सिख धर्मं की स्थापना के समकालीन था इसी कारण उनका प्रभाव सिख धर्मं में भी दिखता हैं।
कबीर की मृत्यु :- संत कबीर की मृत्यु सन 1518 ई. को मगहर में हुई थी। कबीर के अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों में बराबर थे. जब कबीर की मृत्यु हुई तब उनके अंतिम संस्कार पर भी विवाद हो गया था। उनके मुस्लिम अनुयायी चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से हो जबकि हिन्दू, हिन्दू रीति रिवाजो से करना चाहते थे। इस कहानी के अनुसार इस विवाद के चलते उनके शव से चादर उड़ गयी और उनके शरीर के पास पड़े फूलों को हिन्दू मुस्लिम में आधा-आधा बाँट लिया। हिन्दू और मुसलमानों दोनों से अपने तरीकों से फूलों के रूप में अंतिम संस्कार किया. कबीर के मृत्यु स्थान पर उनकी समाधी बनाई गयी हैं।
कबीर के दोहे अर्थ सहित :-
1    गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥
अर्थ- कबीर दास कहते हैं गुरु और गोविन्द (भगवान) दोनों मेरे समझ खड़े हैं किसका पहले आदर-सम्मान किया जाए दोनों का अपना अलग ही महत्व हैं उनके अनुसार इस स्थिति में गुरु का स्थान ही सर्वोतम बताया हैं जिनकी कृपा से मुझे गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं।
2.  दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥
कबीर के अनुसार जब इंसान पर कोई दुःख या कोई विपदा आती हैं तभी वह भगवान के पास जाता हैं सुख के दिन में वह कभी भी भगवान को याद नहीं करता हैं कबीर कहते हैं कि यह मनुष्य सुख के दिन में भी भगवान को याद करेगा तो उसे कभी भी दु:खों का सामना करना पड़ेगा ही नहीं।
3.  साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
कबीर कहते हैं कि ईश्वर मुझे केवल इतना ही धन देना जिससे मेरा गुजरा हो सके और मैं भूखा ना मरू और ना ही मेरे घर आया कोई अतिथि भूखा जाए।
4.  लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
कबीर कहते हैं कि व्यक्ति को जब भी समय मिले उसे राम नाम रूपी धन लुट लेना चाहिए. यह प्राण अनिश्चित हैं निकल जाने के बाद इसका पछतावा रह जायेगा।
5.  रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
कबीरदास कहते हैं कि रात सोकर नींदों में गँवा दी दिन खाना खाने में गुजार दिया ईश्वर ने दिया हीरे जैसा अनमोल जीवन, कोडियों की भांति गँवा दिया. इसीलिए जीवन का हर पल का सदुपयोग करना चाहिए।
6.  माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥
कबीर कहते हैं कि कभी भी संसार में किसी को तुच्छ नहीं समझना चाहिए उन्होंने इसे एक उदाहरण देकर समझाया हैं कि “मिटटी कुम्हार से कहती है कि आज तो तू मुझे पैरों के नीचे रोंद रहा है पर एक दिन ऐसा आएगा जब तू मेरे नीचे होगा और मैं तेरे ऊपर होउंगी.” अर्थात मृत्यु के बाद सब मिटटी के नीचे ही होते हैं।
7.  दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥
कबीर ने इस दोहे में जीवन के महत्व को बताया हैं उनके अनुसार मनुष्य रूपी यह जीवन काफी मुश्किलों से मिलता हैं और यह शरीर बार- बार नहीं मिलता हैं जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाने के बाद उसे पेड़ पर पुनः नहीं लगाया जा सकता हैं।
8.  दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर ।
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥
कबीरदास जी कहते हैं कि जिस प्रकार बहती हुई नदी में कितना भी पानी निकाले उसमे पानी कम नहीं होता उसी प्रकार दान करने वाले व्यक्ति के पास कभी धन की कमी नहीं रहती हैं ‘इस सत्य को तुम अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देख सकते हो यह कबीर कहता हैं।
9.  तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार ।
     सतगुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार ॥
संत कबीर कहते हैं तीर्थ यात्रा पर जाने से एक फल की प्राप्ति होती हैं, संत महात्माओ के सत्संग से चार फलोँ की प्राप्ति होती है और अगर सद्गुरु ही मिल जाएं तो समस्त पदार्थोँ की प्राप्ति हो जाती है फिर किसी वस्तु की इच्छा मन मे नही रहती।
कबीर दास जी का योगदान :- कबीर दास जी ने अपने लेखन से समाज में फैली कुरोतियों को दूर किया है इसके साथ ही सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के खिलाफ विरोध किया है।

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