भगवान शिव का वरदान है ज्योतिर्लिंग, चमत्कारी और रहस्यमयी बातें -


भगवान शिव का वरदान है ज्योतिर्लिंग, चमत्कारी और रहस्‍यमयी बातें -
कुल बारह ज्योतिर्लिंग हैं सोमवार को भगवान शिव के विशेष स्थान ज्योतिर्लिंगों में भारी भीड़ उमड़ती है। ये पवित्र शिवलिंग पूरे देश में प्रतिष्ठित हैं भगवान शिव के इन ज्योतिर्लिंग को प्रकाश लिंग भी कहा जाता है। ये पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। शिव को स्वयम्भू के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है स्वयं उत्पन्न।
देश के 4 कोनों में 4 धामों की स्थापना की। देश के 12 विभिन्न स्थानों पर स्थित शिव के 12 ज्योतिर्लिंग भी हमारी राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुए हैं।
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री शिवशंकर ने हमारे देश के जिन 12 स्थानों पर अवतार लेकर अपने भक्तों को वरदान दिया, वहां पर इन ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई।
क्या आप जानते हैं ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग में क्या अंतर है? शिवपुराण की एक कथा के अनुसार, एकबार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा और जगतपालक विष्णु में विवाद हुआ कि उनमें श्रेष्ठ कौन है, तब उन दोनों का भ्रम समाप्त करने के लिए शिव एक महान ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, जिसकी थाह ये दोनों देव नहीं पा सके। इसी को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। वहीं लिंग का अर्थ है प्रतीक यानी शिव के ज्योति रुप में प्रकट होने और सृष्टि के निर्माण का प्रतीक। ज्योतिर्लिंग सदैव स्वयंभू होते हैं जबकि शिवलिंग मानव द्वारा स्थापित और स्वयंभू दोनों हो सकते है।
हिन्दू धर्मग्रंथों में शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख मिलता है। जहां-जहां ये शिव ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, आज वहां भव्य शिव मंदिर बने हुए  है। वर्तमान में भारत के प्रमुख तीर्थस्थान और धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध इन 12 ज्योतिर्लिंगों का वर्णन शिव पुराण की 'रुद्रसंहिता' में मिलता है।
सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जैन में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा ममलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गोदावरी के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघृष्णेश्वर।
हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।
  1. सोमनाथ मन्दिर (सोमनाथ ज्योतिर्लिंग) :-

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक महत्व रखता है। शिवपुराण के अनुसार जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है। 1022 ई में इसकी समृद्धि को महमूद गजनवी के हमले से सार्वाधिक नुकसान पहुँचा था।
हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है। यहां रेल और बस से जा सकते हैं। रेल वेरावल तक जाती है। सोमनाथ के वर्तमान मंदिर का उद्घाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किया गया था।
 सौराष्ट्र देशे विशवेऽतिरम्ये, ज्योतिर्मय चंद्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृतावतारम् तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।
 2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग :-
यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। इस पर्वत को दक्षिण का कैलास भी कहते हैं। बिनूगोडा-मकरपुर रोड तक रेल से जा सकते हैं।  अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
श्री शैलश्रृंगे विव‍िधप्रसंगे, शेषाद्रीश्रृंगेऽपि सदावसंततम्।
तमर्जुनं मल्लिकार्जुनं पूर्वमेकम्, नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।

 3. महाकाल मन्दिर (महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग) :-
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। ये शिप्रा नदी के तट पर है। यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है। उज्जैन वासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं। उज्जैन को प्राचीनकाल में अवंतिकापुरी कहते थे।

 4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग :-
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है। जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है। ऊं शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है। इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के साथ ही किया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।

 5. केदारनाथ मन्दिर (केदारनाथ ज्योतिर्लिंग) :-
केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में श्री केदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रृंगपर स्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150 मील और ऋषिकेश से 132 मील दूर उत्तरांचल राज्य में स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है।

 6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग :-
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में भीमा नदी के किनारे सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रृद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं। सह्याद्रि पर्वत के एक शिखर का नाम डाकिनी है। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशंकर ज्योतिर्लिंग को असम के कामरूप जिले में गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में स्थित विशाल शिवमंदिर भीमशंकर का स्थान है।

 7. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग :-
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र है। काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है। इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है। इस स्थान की मान्यता है, कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे।

 8. त्र्यंबकेश्वर मन्दिर (त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग) :-
भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।

 9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग :-
श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।
वैद्यनाथ महाराष्ट्र बीड जिलामहाराष्ट्र में पासे परभनी नामक जंक्शन है, वहां से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी है, इस परली स्टेशन से थोड़ी दूर पर परली ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ को भी ज्योतिर्लिंग माना जाता है। परंपरा और पौराणिक कथाओं से परळी स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ही प्रमाणिक मान्यता है।

 10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग :-
भगवान शिव का एक नाम नागेश्वर भी है। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है। धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
निजाम हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिंग को ही कोई-कोई नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं। कुछ लोगों के मत से अल्मोड़ा से 17 मील उत्तर-पूर्व में यागेश (जागेश्वर) शिवलिंग ही नागेश ज्योतिर्लिंग है।

 11. रामेश्वरम मन्दिर (रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग) :-
यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुरं नामक स्थान में स्थित है। यहाँ लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव शंकर की पूजा की थी। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेश्वर या श्रीरामलिंगेश्वर के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है।

 12. घृष्णेश्वर मन्दिर (घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग) :-
इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के समीप स्थित हैं। यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व श्री जनार्दन महाराज की समाधि भी है।

ये हैं शिव के 12 ज्योतिर्लिंग अवसर मिलने पर अवश्य करें दर्शन

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