51 शक्ति पीठ क्या है कहा कहा है
भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के
देह के 51 टुकड़े कर दिए, पवित्र 51 शक्तिपीठ की रहस्य -
मां के हर शक्तिपीठ का अपना महत्व है क्योंकि यह मां के शरीर के
अंग हैं। पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थापित हैं। देवी पुराण में
51 शक्तिपीठों का वर्णन है। देवी भागवत में
जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तन्त्र चूडामणि में
52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ की ही चर्चा की गई है। इन 51
शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं। वर्तमान
में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में
1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ है।
मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे में हर कोई जानता है और नवरात्रि
में मां के इन्हीं रूपों की आराधना की जाती है । हिंदू धर्म में नवदुर्गा पूजन के
समय ही मां के मंदिरों में भी भक्तों का तांता लगता है और उनमें भी मां के शक्तिपीठों
का महत्व अलग ही माना जाता है।
शक्तिपीठ की पौराणिक कथा :-
मां के 51 शक्तिपीठों की एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रजापति
दक्ष की पुत्री के रूप में माता दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव
से उनका विवाह हुआ था। एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया यज्ञ में सभी
देवताओं को बुलाया गया था जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े
नहीं हुए भगवान शिव दक्ष के दामाद थे । यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए अपने
इस अपमान का बदला लेने के लिए सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने भी एक यज्ञ का आयोजन
किया । उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया,
लेकिन भगवान शिव को इस यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा। जब नारद जी से सती को पता चला कि
उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया यह जानकर वे क्रोधित
हो उठीं । नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की जरूरत नहीं
होती है. जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया लेकिन वह
नहीं मानी ।
शंकर जी के रोकने पर भी जिद कर सती यज्ञ में शामिल होने चली गईं।
इस पर दक्ष, भगवान शंकर के बारे में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान
से पीड़ित सती ने यज्ञ-कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
भगवान शंकर को जब यह पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया।
ब्रम्हाण्ड में प्रलय व हाहाकार मच गया। शिव जी के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर
काट दिया भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया
और दुःखी होकर सारे भूमंडल में घूमते हुए तांडव भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय
की स्थिति उत्पन्न होने लगी । पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु
अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य
मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से माता के शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े
पृथ्वी पर गिरा देते।
शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े,
उनके वस्त्र या आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ
का उदय हुआ । इस तरह कुल 51 स्थानों में माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म
में सती ने राजा हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को
पुन: पति रूप में प्राप्त किया।
कुछ महान धार्मिक ग्रंथ जैसे शिव पुराण, देवी भागवत, कालिक पुराण
और अष्टशक्ति के अनुसार चार प्रमुख शक्ति पिठों को पहचाना गया है, जो निम्नलिखित हैं
-
1. कालीपीठ- कालिका :-
कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह
पीठ स्थान हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा है।
मंदिर का दौरा करने का सबसे अच्छा समय सुबह या दोपहर है।
2. कामगिरि- कामाख्या :-
असम के गुवाहाटी जिले में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान
पर माता का योनि भाग गिरा था। गुवाहाटी असम की राजधानी है, पहाड़ी पर चढ़ने के लिए
दो मार्ग हैं एक कदम मार्ग (लगभग 600 कदम) और बस मार्ग (कामख्या द्वार के माध्यम से),
लगभग 3 किलोमीटर।
3. तारा तेरणी :-
तारा तेरणी मंदिर को सबसे अधिक सम्मानित शक्ति पीठ और हिंदू धर्म
के प्रमुख तीर्थ स्थान केंद्रों में से एक माना जाता है। यह माना जाता है कि देवी माता
सती का स्तन कुमारी पहाड़ियों पर गिर गया जहां तारा तेरणी पीठ स्थित है।
4. पडा बिमला :-
विमला मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो देवी विमला को समर्पित है, जो
भारत के उड़ीसा राज्य में पुरी में जगन्नाथ मंदिर परिसर के भीतर स्थित है। यह एक शक्ति
पीठ के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि यहां देवी माता सती के पैर गिरे थे।
51 अन्य प्रमुख शक्ति पीठ की सूची इस प्रकार है :-
1. हिंगलाज :-
पकिस्तान, कराची से 124 किमी उत्तर पूर्व में हिंगला या हिंगलाज
शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता माता सती का सर गिरा था। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा
अप्रैल के महीने में शुरू होती है।
2. किरीट- विमला :-
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता
का मुकुट गिरा था। मुर्शिदाबाद कोलकाता से 239 किलोमीटर की दूरी पर है।
3. वृंदावन- उमा :-
उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन तहसील में माता के बाल के
गुच्छे गिरे थे। निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा, 12 किमी की दूरी पर है।
4. करवीरपुर या शिवहरकर :-
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित यह शक्तिपीठ है, जहां माता की
आंखें गिरी थी। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। उल्लेख है कि वर्तमान
कोल्हापुर ही पुराण प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है।
कोल्हापुर सड़क, रेलवे और वायु मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निकटतम बस स्टैंड
कोल्हापुर में है।
1. श्रीपर्वत- श्रीसुंदरी :-
कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल
गिरी थी। जुलाई से सितंबर तक सड़क से जाने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। नजदीकी
रेलवे स्टेशन जम्मू तवी है जो लद्दाख से 700 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा लेह में
है।
2. वाराणसी- विशालाक्षी :-
उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान की बाली गिरी
थी। शहर के केंद्र में वाराणसी जंक्शन है।
3. सर्वेशेल या गोदावरीतीर :-
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर
कोटिलिंगेश्वर पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। निकटतम रेलवे स्टेशन भी बहुत कम दूरी
पर है। लोग रेलवे स्टेशन से स्थानीय बसों सेवा का प्रयोग कर सकते हैं राजमुंदरी रेलवे
स्टेशन आंध्र प्रदेश के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक है।
4. विरजा- विरजाक्षेत्र :-
यह शक्ति पीठ उड़ीसा के उत्कल में स्थित है। यहाँ पर माता माता सती
की नाभि गिरी थी। कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता और ओडिशा के अन्य छोटे शहरों से बस का लाभ
लेने से पर्यटक स्थल पर पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन जाजपुर केंझार रोड रेलवे
स्टेशन है।
5. मानसा-दाक्षायणी :-
तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है।
इसी जगह पर माता माता सती का दायाँ हाथ गिरा था। भारतीय श्रद्धालुओं की एक सीमित संख्या
को कैलाश मानसरोवर हर साल यात्रा करने की अनुमति है। भारतीय पक्ष से कैलाश पर्वत तक
पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं। उनका उल्लेख नीचे दिया गया है: मार्ग 1: लिपुलख पास मार्ग
मार्ग 2: नाथु ला पास मार्ग यात्रा है।
6. नेपाल-महामाया :-
नेपाल के पशुपतिनाथ नाथ में स्थित इस शक्तिपीठ में माँ माता सती
के दोनों घुटने गिरे थे। यहां पहुंचने के कई साधन है। श्रद्धालु बस, ट्रेन और हवाई
रास्ते द्वारा काठमांडू पहुंच सकते हैं।
7. सुगंधा- सुनंदा :-
बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित
है माँ सुगंध का शक्तिपीठ है जहाँ माता माता सती की नासिका गिरी थी। भारत से जाने वाले
लोगों को इस तीर्थ यात्रा के लिए वीजा प्राप्त करना होगा। श्रद्धालु वायु, समुद्र या
सड़क के माध्यम से इस शक्तिपीठ तक पहुंच सकते हैं।
8. कश्मीर- महामाया :-
कश्मीर के पहलगाव जिले के पास माता का कंठ गिरा था। इस सशक्तिपीठ
को महामाया के नाम से जाना जाता है। जम्मू और श्रीनगर सड़क के माध्यम से जुड़े हुए
हैं। यात्रा के इस भाग के लिए बसें उपलब्ध की जा सकती हैं। जम्मू और श्रीनगर तक पहुंचने
के लिए हवाई रास्ते का भी प्रयोग किया जा सकता है।
13. ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका) :-
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में माता माता सती की जीभ गिरी थी।
इस शक्तिपीठ को ज्वालाजी स्थान कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी से 30 किमी
दक्षिण की और में स्थित है, धर्मशाला से 60 किमी की दूरी पर है।
14. जालंधर- त्रिपुरमालिनी :-
पंजाब के जालंधर छावनी के पास देवी तलाब है जहाँ माता का बायाँ वक्ष
(स्तन) गिरा था। यह निकटतम रेलवे स्टेशन से लगभग 1 किलोमीटर दूर है और शहर के केंद्र
में स्थित है।
15. वैद्यनाथ- जयदुर्गा :-
झारखंड में स्थित वैद्यनाथधाम पर माता का हृदय गिरा था। यहाँ माता
के रूप को जयमाता और भैरव को वैद्यनाथ के रूप से जाना जाता है। निकटतम रेलवे स्टेशन
देवघर है।
16. गंडकी- गंडकी :-
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ
शक्तिपीठ स्थित है जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल गिरा था। काठमांडू से पोखरा और फिर
पोखरा से जेमॉम हवाई अड्डे तक जाया जा सकता है।
17. बहुला- बहुला (चंडिका) :-
बंगाल से वर्धमान जिला से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर स्थित बाहुल
शक्तिपीठ स्थापित है जहाँ माता माता सती का बायां हाथ गिरा था।
18. उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका :-
बंगाल में वर्धमान जिले के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दायीं
कलाई गिरी थी। निकटतम रेलवे स्टेशन गसकारा स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 16 किमी दूर
है।
19. त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी :-
त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव पर माता का दायाँ
पैर गिरा था। निकटतम हवाई अड्डा अगरतला में है, जहां से आप आसानी से सड़क तक मंदिर
पहुंच सकते हैं। निकटतम रेल प्रमुख एनए ई रेलवे पर कुमारघाट है।
20. चट्टल – भवानी :-
बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के निकट चंद्रनाथ पर्वत
शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी।
21. त्रिस्रोता- भ्रामरी :-
बंगाल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायाँ
पैर गिरा था।
22. प्रयाग- ललिता :-
उत्तर प्रदेश के इलाहबाद शहर के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली
गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता हैं। इलाहाबाद और ललिता देवी
मंदिर (शक्ति पीठ) के बीच लगभग 3 किलोमीटर है।
23. जयंती- जयंती :-
यह शक्तिपीठ आसाम के जयंतिया पहाड़ी पर स्थित है जहां देवी माता
सती की बाईं जंघा गिरी थी। यहां देवी माता सती को जयंती और भगवान शिव को कृमाशिश्वर
के रूप में पूजा की जाती है।
24. युगाद्या- भूतधात्री :-
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा
गिरा था। यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है।
25. कन्याश्रम- सर्वाणी :-
कन्याश्रम में माता का पीठ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वाणी के नाम
से जाना जाता है।कन्याश्राम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के रूप में भी जाना
जाता है।कन्याकुमारी दक्षिण भारत के सभी शहरों से सड़क के मार्ग से जुड़ा हुआ है।
26. कुरुक्षेत्र- सावित्री :-
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में माता के टखने गिरे थे। इस शक्तिपीठ
को सावित्री के नाम से जाना जाता है।
27. मणिदेविक- गायत्री :-
मनीबंध, अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में पुष्कर के पास गायत्री
पहाड़ के पास स्थित है जहां माता की कलाई गिरी थी।
28. श्रीशैल- महालक्ष्मी
:-
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला
(ग्रीवा) गिरा था। बांग्लादेश को दुनिया के किसी भी हिस्से से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय
हवाई अड्डा ढाका में है, जो शहर से 20 किमी की दूरी पर है।
29. कांची- देवगर्भा :-
कंकाललाला, बीरभूम जिले में बोलीपुर स्टेशन के 10 किमी उत्तर-पूर्व
में कोप्पई नदी के तट पर, देवी स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में जानी जाती है,
जहां माता का श्रोणि गिरा था।
30. पंचसागर- वाराही :-
पंचासागर शक्ति पीठ, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित जहां
मां माता सती के निचले दंत गिरे थे। निकटतम रेलवे स्टेशन वाराणसी रेलवे स्टेशन है।
31. करतोयातट- अपर्णा :-
अपर्णा शक्ति पीठ एक ऐसी जगह है जहां देवी माता सती के बाईं पायल
गिरी थी। यहां देवी को अपर्णा या अर्पान के रूप में पूजा की जाती है जो कि कुछ भी नहीं
खाती और भगवान शिव को बैराभा का रूप मिला। भवानीपुर गांव करवतया नदी के किनारे पर है,
शेरपुर (सेरापुर) से 28 किमी। हम ढाका से भानापुर जामुना ब्रिज तक जा सकते हैं। सिराजगंज
जिले में चांदिकोना गुजरने के बाद, हम घोगा बोट-टूला बस स्टॉप पर पहुंचते हैं, जहां
से भावानिपपुर मंदिर पास है।
32. विभाष- कपालिनी :-
पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर स्थान पर माता की बाएं टखने
गिरे थे। यह कोलकाता से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर है, और बंगाल की खाड़ी के करीब
रून्नारयन नदी के तट पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन तमलुक ही है।
33. कालमाधव -देवी काली :-
मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी के पास माता का
बायाँ नितंब गिरा था। जबलपुर रोड से अमरकंटक शहर तक बस सुविधा उपलब्ध की जा सकती है।
34. शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी) :-
मध्यप्रदेश के अमरकंटक जिले में स्थित नर्मदा के उद्गम पर माता का
दायाँ नितंब गिरा था। जबलपुर रोड से अमरकंटक शहर तक बस सुविधा उपलब्ध की जा सकती है
35. रामगिरि- शिवानी :-
उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायाँ
स्तन गिरा था। चित्रकूट के लिए निकटतम रेल प्रमुख चित्रकूट धाम (11 किलोमीटर) झांसी-माणिकपुर
मुख्य लाइन पर है। मंदाकीनी नदी के तट पर चित्रकूट के 2 किमी दक्षिण में स्थित जानकी
सरोवर/ जानकी कुंड नाम का एक पवित्र तालाब, शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। कुछ
लोग इसे राजगिरि (आधुनिक राजगीर) कहते हैं,यह एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थान हैं। राजगीर
के गिद्ध का पीक (ग्रीधकोटा / ग्राध्रुका) को शक्ति पिठ के रूप में माना जाता है।
36. शुचि- नारायणी :-
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर
है, जहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे।
37. प्रभास- चंद्रभागा ;-
गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र
में माता का उदर गिरा था।
38. भैरवपर्वत- अवंती :-
मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत
पर माता के ऊपरीओष्ठ गिरे थे। निकटतम रेलवे स्टेशन उज्जैन ही है।
39. जनस्थान- भ्रामरी :-
महाराष्ट्र के नासिक नगर पर माता की ठोड़ी गिरी थी। निकटतम रेलवे
स्टेशन और हवाई अड्डा नासिक स्थित है।
40. रत्नावली- कुमारी :-
बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर माता का दायां
कंधा गिरा था। रेल सड़क परिवहन देश के इस हिस्से में आने का सबसे सामान्य साधन है।
हावड़ा एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है जो खानकुल से लगभग 81 किलोमीटर की दूरी पर है।
41. मिथिला- उमा (महादेवी) :-
भारत-नेपाल की सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता
का बायाँ कंधा गिरा था। निकटतम हवाई अड्डा पटना मैं है। निकटतम रेलवे स्टेशन जनकपुर
स्टेशन है। 42. नलहाटी- कालिका :-
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में माता के स्वर रज्जु गिरी थी। निकटतम
बस स्टैंड नालहाटी बस स्टैंड है और निकटतम रेलवे स्टेशन नालहटी जंक्शन है।
43. देवघर- बैद्यनाथ :-
झारखंड के बैद्यनाथ में जयदुर्गा मंदिर एक ऐसी जगह है जहां माता
माता सती का हृदय गिरा था। मंदिर को स्थानीय रूप से बाबा मंदिर / बाबा धाम कहा जाता
है। परिसर के भीतर, जयदुर्गा शक्तिपीठ वैद्यनाथ के मुख्य मंदिर के ठीक सामने मौजूद
हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन जसीडिह 10 किमी है।
44. कर्णाट जयादुर्गा :-
कर्णाट शक्ति पीठ कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में स्थित है, माता माता
सती के दोनों कान गिरे थे। यहां देवी को जयदुर्गा या जयदुर्ग और भगवान शिव को अबिरू
के रूप में पूजा की जाती है।
45. यशोर- यशोरेश्वरी :-
बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के
हाथ की हथेली गिरी थी। यह ईश्वरपुर, श्यामनगर उपनगर, सातखिरा जिला, बांग्लादेश में
स्थित है। निकटतम हवाई अड्डा बांग्लादेश की राजधानी ढाका में स्थित है ।
46. अट्टाहास- फुल्लरा :-
पश्चिम बंगला के अट्टाहास स्थान पर माता के निचला ओष्ठ गिरा था।
यह कोलकाता से 115 किमी दूर है।अहमपुर अहमपुरपुर कटवा रेलवे से लगभग 12 किमी दूर है।
47. नंदीपूर- नंदिनी :-
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले मी माता का गले का हार गिरा था। यह
शक्ति पीठ स्थानीय रेलवे स्टेशन स केवल10 मिनट की दूरी पर है।
48. सर्वानन्दकरी :-
बिहार के पटना में माता माता सती कि यहां दाएं जांघ गिरी थी। इस
शक्तीपीठ को सर्वानंदकरी के नाम से जाना जात है।निकटतम हवाई अड्डा जय प्रकाश नारायण
अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो 8 किलोमीटर दूर स्थित है।
49. लंका- इंद्राक्षी :-
श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी। यह पीठ,
नैनातिवि (मणिप्लालम) में है, श्रीलंका के जाफना से 35 किलोमीटर, नल्लूर में है। रावण
(श्रीलंका के शासक या राजा) और भगवान राम मैं भी यहां पूजा की थी।
50. विराट- अंबिका :-
यह शक्ति पीठ राजस्थान मैं भरतपुर के विराट नगर में स्थित है जहां
माता के बाएं पैर कि उंगलियां गिरी थी। भरतपुर रेलवे स्टेशन पर कई सीधी ट्रेन उपलब्ध
हैं। भरतपुर रेलवे स्टेशन से अंबिका शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए स्थानीय ट्रेन से जाना
पड़ता है।
51. चट्टल
यह मंदिर मा माता सती के 51 शक्ति पिठों में सूचीबद्ध है। ऐसा कहा
जाता है कि, माँ माता सती का दाहिना हाथ यहाँ गिरा था। चट्टल शक्ति पीठ, चटगांव जिला,
बांग्लादेश के सताकुंडा स्टेशन में स्थित है।
बांग्लादेश में सड़क परिवहन सबसे आम साधन है । निकटतम हवाई अड्डा
शाह अमानत अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इस शक्ति पीठ को देखने के लिए भारतीय तीर्थ
यात्रियों को वीजा के लिए आवेदन करना होगा।
भगवान_शिव के "35" रहस्य!!!!
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
19.* तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
24. शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
34. देवों के देव महादेव
देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।
35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,।।
51 शक्ति पीठ क्या है कहा कहा है
वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश के कई हिस्सों में स्थित है। भारत में 42 शक्ति पीठ है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में है और 4 बांग्लादेश में, 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है।
भारत के प्रमुख शक्तिपीठ
1. हिंगलाज शक्तिपीठ:-
यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के कराची से 125 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। पुराणों की मानें तो यहां माता का शीश गिरा था। इसकी शक्ति-कोटरी (भैरवी कोट्टवीशा) हैं। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है।
2. शर्कररे शक्तिपीठ:-
माँ सती का यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के कराची शहर में स्थित सुक्कर स्टेशन के निकट मौजूद है। हालाँकि कुछ लोग इसे नैना देवी मंदिर, बिलासपुर में भी बताते हैं। यहां देवी की आँख गिरी थी और वे महिष मर्दिनी कहलाती हैं।
3. सु्गंधा-सुनंदा:-
यह शक्तिपीठ बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से करीब 20 किमी दूर सोंध नदी के पास स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि जब विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को विभिन्न हिस्सों में विभक्त किया था तो यहाँ उनकी नाक आकर गिरी थी।
4. कश्मीर-महामाया:-
महामाया शक्तिपीठ जम्मू-कश्मीर के पहलगाँव में है। मान्यता है कि यहाँ माँ का कंठ गिरा था और बाद में यहीं माहामाया शक्तिपीठ बना।
5. ज्वालामुखी-सिद्धिदा:-
भारत में हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी। इसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। हजारों श्रद्धालु इस शक्तिपीठ में माँ के दर्शन के लिए आते हैं।
6. जालंधर-त्रिपुरमालिनी:-
पंजाब के जालंधर में माता त्रिपुरमालिनी को समर्पित देवी तालाब मन्दिर है। धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि यहां माता का बायाँ वक्ष गिरा था।
7. वैद्यनाथ- जयदुर्गा:-
झारखंड में स्थित वैद्यनाथ धाम पर माता का हृदय गिरा था। यहाँ माता के रूप को जयमाता और भैरव को वैद्यनाथ के रूप से जाना जाता है।
8. नेपाल- महामाया:-
गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के साथ ही स्थित है, जहां देवी के दोनों घुटने गिरे बताये जाते हैं। यहां देवी का नाम महाशिरा है।
9. मानस- दाक्षायणी:-
यह शक्तिपीठ तिब्बत में कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास स्थित है। ऐसा कहा जाता यहाँ पर शिला पर माता का दायां हाथ गिरा था।
10. विरजा- विरजाक्षेतर:-
यह शक्ति पीठ उड़ीसा के उत्कल में स्थित है। यहाँ पर माता सती की नाभि गिरी थी। कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता और ओडिशा के अन्य छोटे शहरों से बस का लाभ लेने से पर्यटक स्थल पर पहुंच सकते हैं।
11. गंडकी- गंडकी:-
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर है। ऐसा कहते हैं कि यहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल यानी कनपटी गिरी थी।
12. बहुला-बहुला (चंडिका):-
भारत के पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से 8 किमी दूर कटुआ केतुग्राम के पास अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायां हाथ गिरा था।
13. उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका: -
भारत में पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से 16 किमी दूर गुस्कुर स्टेशन से उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दाईं कलाई गिरी थी।
14. त्रिपुरा-त्रिपुर सुंदरी:-
भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के पास राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था।
15. चट्टल - भवानी:-
बांग्लादेश में चटगाँव जिले के सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी।
16. त्रिस्रोता - भ्रामरी:-
भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था।
17. कामगिरि - कामाख्या:-
भारतीय राज्य असम के गुवाहाटी जिले के कामगिरि क्षेत्र में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता की योनि गिरी थी।
18. प्रयाग - ललिता:-
भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के संगम तट पर माता की हाथ की अंगुली गिरी थी।
19. युगाद्या- भूतधात्री:-
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम स्थित जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था।
20. जयंती- जयंती:-
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गांव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर है। यहां माता की बायीं जंघा गिरी थी।
21. कालीपीठ - कालिका:-
पश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था।
22. किरीट - विमला (भुवनेशी):-
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था।
23. वाराणसी - विशालाक्षी:-
उत्तर प्रदेश के काशी में मणिकर्णिका घाट पर माता के कान के मणि जड़ित कुंडल गिरे थे।
24. कन्याश्रम - सर्वाणी:-
कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था।
25. कुरुक्षेत्र - सावित्री:-
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी गिरी थी।
26. मणिदेविक - गायत्री:-
अजमेर के पास पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणि-बंध गिरे थे।
27. श्रीशैल - महालक्ष्मी:-
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गांव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था।
28. कांची- देवगर्भा:-
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी।
29. कालमाधव - देवी काली:-
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के पास माता का बायाँ नितंब गिरा था, जहां एक गुफा है।
30. शोणदेश - नर्मदा (शोणाक्षी):-
मध्य प्रदेश के अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था।
31. रामगिरि - शिवानी:-
उत्तर प्रदेश के झांसी-मणिकपुर रेलवे स्टेशन चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां वक्ष गिरा था।
32. वृंदावन - उमा:-
उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे।
33. शुचि- नारायणी:-
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है। यहां पर माता के ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे।
34. पंचसागर - वाराही:-
पंचसागर (एक अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत गिरे थे।
35. करतोयातट - अपर्णा:-
बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी।
36. श्रीपर्वत - श्रीसुंदरी:-
कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी। दूसरी मान्यता अनुसार आंध्रप्रदेश के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएं पैर की एड़ी गिरी थी।
37. विभाष - कपालिनी:-
पश्चिम बंगाल के जिले पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी।
38. प्रभास - चंद्रभागा:-
गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के पास वेरावल स्टेशन से 4 किमी दूर प्रभास क्षेत्र में माता का उदर (पेट) गिरा था।
39. भैरवपर्वत - अवंती:-
मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के होंठ गिरे थे।
40. जनस्थान - भ्रामरी:
महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी।
41. सर्वशैल स्थान:-
आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास सर्वशैल स्थान पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे।
42. गोदावरीतीर:-
गोदावरी तीर शक्ति पीठ या सर्वशैल प्रसिद्ध शक्ति पीठ है, यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में राजमुंदरी के पास गोदावरी नदी के किनारे कोटिलेश्वर मंदिर में स्थित है। इस जगह पर माता के दक्षिण गंड गिरे थे।
43. रत्नावली - कुमारी:-
बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायां स्कंध गिरा था।
44. मिथिला- उमा (महादेवी):-
भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के पास मिथिला में माता का बायां स्कंध गिरा था।
45. नलहाटी - कालिका तारापीठ:-
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी।
46. कर्णाट- जयदुर्गा:-
माँ सती के कुछ शक्तिपीठों के बारे में अभी भी रहस्य बना हुआ है और उन्हीं रहस्यमयी शक्तिपीठों में कर्णाट (अज्ञात स्थान) शक्तिपीठ एक है। कहते हैं कि यहाँ पर माता के दोनों कान गिरे थे।
47. वक्रेश्वर - महिषमर्दिनी:-
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य गिरा था।
48. यशोर- यशोरेश्वरी:-
यशोरेश्वरी शक्तिपीठ बांग्लादेश के खुलना जिले के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर है। धार्मिक आस्था के अनुसार, कहते हैं कि इसी स्थान पर माँ सती के हाथ और पैर गिरे थे।
49. अट्टाहास - फुल्लरा:-
पश्चिम बंगाल के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के होंठ गिरे थे। नवदुर्गा के समय माँ के भक्तों का यहाँ जमावड़ा लगा रहता है।
50. नंदीपूर - नंदिनी:-
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के पास माता का गले का हार गिरा था।
51. लंका - इंद्राक्षी:-
इंद्राक्षी शक्तिपीठ भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका के त्रिंकोमाली में स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा माना गया है कि संभवत: श्रीलंका के त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी।
Competitive Exam Syllabus GK , Small Business Ideas,Low Investment Business Ideas, Kraft Board And Papers Manufacturer Mills ,जानिए EPF Member’s Form-19, फॉर्म-10C, फॉर्म-31, फॉर्म-10D कब भरा जाता है ,
विटामिनों के रासायनिक नाम ,पेट में गैस की समस्या , गर्मियों में अपने चहेरे काला होने से बचाये , Bel Patra JuiceHealth Benefits बेल की पत्तियों के काढ़े का सेवन गर्मियों में लाभप्रद ,करेला के फायदे |, लहसुन के फायदेप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये ,बालों को मजबूत बनाये,सर्दी जुखाम मिटाए , पेट में दर्द होने के प्रमुख कारण और आसान घरेलू उपाय ,चोट क घाव भरने के लिए ये देशी दवाई का उपयोग करे , दाद और खुजली की यह अचूक दवा जरूर देखिये , मुंह के छाले से परेशान हैं, तो अपनाएं ये घरेलू उपाय ,दाँत में दर्द होने के प्रमुख कारण और आसान घरेलू उपाय , पाचन से जुड़ी समस्याओं को जड़ से खत्म कर देता है? हैजा, दस्त,पेचिश,पीलियाएकउत्कृष्टहर्बलदवाई अमरूद के पत्तों के फायदे - मधुमेह ,ब्लड प्रेशर कंट्रोल ,पाचन तंत्र को दुरुस्त रखे .