Syllabus Class 1 to 5
- हिंदी
- इंग्लिश ।
- गणित।
- संस्कृत ।
- सामान्य ज्ञान ।
- कंप्यूटर ज्ञान ।
- सनातन धर्म का ज्ञान ।
- विज्ञान ।
- इतिहास।
सनातन धर्म का ज्ञान ।
हिंदुस्तान को, हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए , भारतीय संस्कृत को ख़त्म होने से बचाओ। जड़ मजबूत करो। गुरुकुल खोलो , वेदो , शास्त्रों की पढ़ाई शुरू करो।
बच्चो को शस्त्र , तथा शास्त्र का ज्ञान दो।
अंग्रेजी का पूर्ण बहिष्कार करो। अन्यथा आने वाले समय में हिंदी भी नहीं बचा पाएंगे।
सच में , आज भी लगता है देश गुलाम है ।
जागो जागो भारत :-
इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में 732000 गुरुकुल थे ।
आजादी के 75 साल बाद भी भारतीय संस्कृति शुरू नहीं हुई । । लार्ड मैकाले ने लगभग 1835 में , हिन्दुस्तानियों को गुलाम बनाएं रखने के लिए गुरुकुल खत्म किया , क्योंकि यह शास्त्र ,ओर शास्त्रों का ज्ञान दिया जाता था, जिससे देश प्रेम तथा आत्म रक्षा की शिक्षा दी जाती थी ।।
दुःख की बात ये है आजादी के बाद आज तक शुरू नही किया गया ,।
आधुनिक पढ़ाई के साथ साथ गुरुकुल में शस्त्र ओर शास्त्रों का ज्ञान भी दिया जा सकता है ।
शिक्षा ,शिक्षार्थी, शिक्षक और यजुर्वेद।
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वैदिक गुरुकुलीय आर्ष शिक्षा पद्धति संसार की सबसे प्राचीन वैज्ञानिक, तार्किक ,बहुआयामी विकसित शिक्षा पद्धति है । जिसे भारतीय शिक्षा पद्धति के नाम से भी पहचाना संबोधित किया जाता है ।अंग्रेजों के भारत आगमन से पूर्व भारतीय शिक्षा पद्धति भारत के लाखों ग्रामों में संचालित गुरुकुलो मे स्थापित लागू एकछत्र व्यापकता से प्रचलित थी। भारतीय अर्थात गुरुकुलीय वैदिक शिक्षा पद्धति की विलक्षणता यह है यह मानव द्वारा विकसित ना होकर ईश्वर द्वारा प्रतिपादित है। इसे ईश्वरीय शिक्षा पद्धति भी कहा जाता हैं। भारतीय शिक्षा पद्धति विद्यार्थियों को मात्र केवल साक्षर ही नहीं करती या उनको आजीविका अर्जित करने के योग्य ही नहीं बनाती उन्हें चरित्रवान जितेंद्रिय विवेकशील भी बनाती है यह भौतिक व आध्यात्मिक दोनों ही उन्नति की बात करती है ।
वैदिक शिक्षा पद्धति एक औसत मनुष्य का नहीं महामानव का निर्माण करती है जो मैं व मेरा की बात नहीं करता संपूर्ण वसुधा को अपना परिवार मानता है छात्र का मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित करती है। चारों वेदों ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद में अनेक मंडलों अध्याय स्थलों पर सैकड़ों मंत्र उपलब्ध है जो वैदिक शिक्षा पद्धति के आदर्श मूल भाव सौंदर्य को उल्लेखित चित्रित करते हैं।
ऋग्वेद जहां ज्ञान का वेद अर्थात मस्तिष्का का वेद है तो वही यजुर्वेद हाथ का वेद है ।परमात्मा ने ऋग्वेद में प्रकृति से लेकर परमाणु परमात्मा पर्यंत समस्त पदार्थों अर्थात गुण व गुणी का व्याख्यान किया है। वही यजुर्वेद में उन गुण, गुणों का उपयोग करते हुए कैसे आत्मिक शारीरिक मानसिक विकास किया जाए लोक से परलोक की यात्रा की सफलता सार्थकता को वैदिक शिक्षा पद्धति सुनिश्चित करती है। । मंत्र संख्या की दृष्टि से तीसरे सबसे विशाल वेद यजुर्वेद जिसमें 1975 मंत्र है उसके 40 अध्यायों में सैकड़ों मंत्र है जो वैदिक शिक्षा पद्धति का चित्रण खाका प्रस्तुत करते है। इस विषय पर प्रकरण अनुकूल बोध के लिए हम यजुर्वेद के दूसरे अध्याय के 33 व मंत्र का अवलोकन करते हैं। मंत्र इस प्रकार है।
आधत्त पितरो गर्भ कुमारं पुषकरमस्त्रजम्।
यथेह पुरुषो -सत।।
(यजुर्वेद अध्याय 2 ,33 वा मंत्र)
इस मंत्र का भावार्थ वेद उद्धारक महर्षि दयानंद सरस्वती ने इस प्रकार किया है।
"ईश्वर आज्ञा देता है कि विद्वान पुरुष और स्त्रियों को चाहिए कि विद्यार्थी कुमार व कुमारी को विद्या देने के लिए गर्भ के समान धारण करें जैसे क्रम क्रम से गर्भ के बीच में देह बढता है वैसे अध्यापक लोगों को चाहिए कि अच्छी अच्छी शिक्षा से ब्रह्मचारी कुमार व कुमारी को श्रेष्ठ विद्या में वृद्धि करें तथा उनका पालन करें वह विद्या के योग से धर्मात्मा और पुरुषार्थ युक्त होकर सदासुखी हो। ऐसा अनुष्ठान सदैव करना चाहिए"। सचमुच इस मंत्र में कितना सार्थक संदेश आचार्य शिष्य के लिए दिया गया है आचार्य अपने विद्यार्थियों को गर्भ के समान धारण करें जैसे गर्भ माता के शरीर में बढ़ता है ऐसे ही आचार्य आचार्य अपने शिष्य का संपूर्ण विकास करें विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करके घर पर ही ना बैठा रहे अपनी शिक्षा को राष्ट्रीय समाज हित में लगावे वैदिक शिक्षा पद्धति कर्मठता की बात करती है। भारतीय वैदिक शिक्षा पद्धति में आचार्य अर्थात शिक्षक केवल वेतन भोगी नियुक्त कर्मचारी मात्र नहीं है। वह समाज व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है जिसके गर्भ में राष्ट्र का भविष्य पलता है। भारतीय संस्कृति में मनीषा में प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से शुद्र अर्थात मूर्ख ही माना गया है। प्रत्येक व्यक्ति का दूसरा जन्म होता है जिसे विद्या जन्म कहते हैं। दूसरा जन्म होने के कारण ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य जनों को द्विज भी कहा जाता है। इस दूसरे जन्म में मां-बाप के साथ-साथ आचार्य ही मुख्य सहायक होता है। वैदिक वांग्मय में आचार्य शब्द की भी बहुत सुंदर व्याख्या की गई है । महर्षि दयानंद सरस्वती के अनुसार आचार्य को इस प्रकार परिभाषित किया गया है ' जो सांगोपांग वेद विद्याओ का अध्यापक सत्याचार का ग्रहण और मिथ्याचार का त्याग करावे वह आचार्य कहाता है । महर्षि दयानंद ने शिक्षा शब्द को भी परिभाषित किया है" शिक्षा वह जिससे विद्या ,सभ्यता ,धर्मात्मा , जितेंद्रयिता आदि की बढती होवे वह शिक्षा कहाती है। सचमुच कितनी सुंदर व्याख्या है शिक्षा शब्द की जो महर्षि दयानंद ने प्रस्तुत की है महर्षि दयानंद ने अपने पास से कुछ भी नहीं कहा। देव दयानंद की जो मान्यता है वह मूलतः वेदों की मान्यता शिक्षा है। जिसे ईश्वर ने मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए वेदों में प्रकाशित उपदेशित किया है। इतना ही नहीं यजुर्वेद के छठे अध्याय के 14 वे मंत्र मे भी क्रम से वैदिक शिक्षा पद्धति का खाका प्रस्तुत किया गया है जो वैदिक शिक्षा पद्धति की महानता पवित्रता सार्वभौमिक उपादेयता को सिद्ध करती है। हम यहां केवल इस लेख के विस्तार भय से उक्त मंत्रों के कुछ पदों को व उनके अर्थों को ही प्रदर्शित करते हैं।
वाचं ते शुन्धामि प्राणं ते शुन्धामि । (यजुर्वेद 14 मंत्र अध्याय 6)
पदार्थ:
इस मंत्र में आचार्य शिष्य से कह रहा है मैं विविध शिक्षाओं से तेरी वाणी जिसे तू बोलता है उसको शुद्ध करता हूं अर्थात उसके विषय में अनुकूल करता हूं जिससे तू देखता है तेरे नेत्र को शुद्ध करता हूं तेरी समस्त इंद्रियों को शुद्ध करता हूं अंत में तेरे चरित्र को शुद्ध करता हूं तेरे समस्त व्यवहारों को शुद्ध करता हूं। सचमुच कितना महान वैचारिक आग्रह प्रतिबद्धता है किसी आचार्य की अपनी छात्र के प्रति क्या आज की आंग्ल शिक्षा पद्धति मैकाले की शिक्षा पद्धति में हमें इस पवित्र भाव के दर्शन होते हैं। आजकल के आग्ला पद्धति से संचालित स्कूलों में छात्र-छात्राओं के चरित्रहनन के किस्से हम अखबार न्यूज़ चैनल आदि के माध्यम से पढ़ते सुनते हैं। इतनी शर्मनाक यह घटनाएं होती हैं कि शर्म को भी शर्म आ जाए यदा-कदा ऐसी घटनाओं में शिक्षक भी इन में लिप्त पाए जाते हैं ।आज की शिक्षा पद्धति राष्ट्रीय चरित्र की हत्या कर स्वार्थी निष्ठा हीन आत्म केंद्रित कामुक विलासी अधार्मिक छात्रों का निर्माण कर रही है। जबकि वैदिक शिक्षा पद्धति परोपकारी दिव्य सर्वगुण संपन्न पवित्र सुशील छात्र व्यक्तित्व का निर्माण करती थी। जिसमें मुख्य भूमिका आचार्य की होती थी। आज शिक्षा में नैतिक मूल्य ढूंढने से भी दिखाई नहीं देते। संस्कारवान मूल्य युक्त शिक्षा ही सच्चे अर्थों में शिक्षित संस्कारी स्वाबलंबी नागरिकों का निर्माण करती है भारतीय वैदिक शिक्षा पद्धति इन सभी गुणों की पोषक संवर्धक है। भारत की शिक्षा नीति के निर्माताओं को खुले हृदय मत पंथ संप्रदाय के आग्रह से मुक्त होकर वैदिक शिक्षा पद्धति को संपूर्ण राष्ट्र राज्यों में लागू आत्मसात करना चाहिए तब जाकर शिक्षित संस्कारवान शक्तिशाली विश्व गुरु भारत का निर्माण पुनः संभव हो सकेगा। सर्वशक्तिमान सृष्टि का आदि उपदेशक परमात्मा हमारे नेताओं नीति निर्माताओं की मति को इस विषय में लगावे ।
वेद-ज्ञान:-
प्र.1- वेद किसे कहते है ?
उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2- वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।
प्र.3- ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4- ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।
प्र.5- वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।
1-ऋग्वेद
2-यजुर्वेद
3-सामवेद
4-अथर्ववेद
प्र.6- वेदों के ब्राह्मण ।
वेद ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद - ऐतरेय
2 - यजुर्वेद - शतपथ
3 - सामवेद - तांड्य
4 - अथर्ववेद - गोपथ
प्र.7- वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर - चार।
वेद उपवेद
1- ऋग्वेद - आयुर्वेद
2- यजुर्वेद - धनुर्वेद
3 -सामवेद - गंधर्ववेद
4- अथर्ववेद - अर्थवेद
प्र 8- वेदों के अंग हैं ।
उत्तर - छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष
प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
वेद ऋषि
1- ऋग्वेद - अग्नि
2 - यजुर्वेद - वायु
3 - सामवेद - आदित्य
4 - अथर्ववेद - अंगिरा
प्र.10- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।
प्र.11- वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर- सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12- वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- चार ।
ऋषि विषय
1- ऋग्वेद - ज्ञान
2- यजुर्वेद - कर्म
3- सामवे - उपासना
4- अथर्ववेद - विज्ञान
ऋग्वेद में।
1- मंडल - 10
2 - अष्टक - 08
3 - सूक्त - 1028
4 - अनुवाक - 85
5 - ऋचाएं - 10589
यजुर्वेद में।
1- अध्याय - 40
2- मंत्र - 1975
सामवेद में।
1- आरचिक - 06
2 - अध्याय - 06
3- ऋचाएं - 1875
अथर्ववेद में।
1- कांड - 20
2- सूक्त - 731
3 - मंत्र - 5977
प्र.14- वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ? उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15- क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर- बिलकुल है,।
प्र.16- क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर- नहीं।
प्र.17- सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
प्र.18- वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर- वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व ।
प्र.19- वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर-
1- न्याय दर्शन - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन - व्यास मुनि।
प्र.20- शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर- आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21- प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर- केवल ग्यारह।
प्र.22- उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-
01-ईश ( ईशावास्य )
02-केन
03-कठ
04-प्रश्न
05-मुंडक
06-मांडू
07-ऐतरेय
08-तैत्तिरीय
09-छांदोग्य
10-वृहदारण्यक
11-श्वेताश्वतर ।
प्र.23- उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर-
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र
प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000 वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000 वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000 वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000 वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122 वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है।
पंच महायज्ञ
1- ब्रह्मयज्ञ
2- देवयज्ञ
3- पितृयज्ञ
4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
5- अतिथियज्ञ
स्वर्ग - जहाँ सुख है।
नरक - जहाँ दुःख है।.
वेद में क्या लिखा गया है?
वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है। शतपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया।
वेद में क्या लिखा गया है?
वेद के भाग कौन कौन से हैं?
वेदों के छः अंग होते है—
१ - शिक्षा
२ - कल्प
३ - निरूक्त
४ - व्याकरण
५ - छंद
६ - ज्योतिष
वास्तविक रिग वेद संस्कृत में है। अनुवाद जितना भी अच्छा हो - अनुवाद ही होता है।
अथर्ववेद में क्या लिखा है?
अथर्ववेद में कौन कौन से मंत्र हैं?
अथर्व वेद पढ़ने वाले को क्या कहते हैं?
वेदों का दूसरा नाम क्या है?
चारों वेदों में कुल कितने मंत्र हैं?
वेद कितना पुराना है?
वेद के कितने अंग माने गए हैं?
हिंदू धर्म में कुल कितने ग्रंथ है?
हिंदू धर्म में कुल कितने शास्त्र हैं?
वेदों की रचना कैसे हुई?
वेदों की रचना कब और कहां हुई?
वेदों की रचना कब और किसने की?
वेदों का जन्म कब हुआ?
ब्रह्मा विष्णु और महेश के संबंध में हिन्दू मानस पटल पर भ्रम की स्थिति है| वे उनको ही सर्वोत्तम और स्वयंभू मानते हैं, लेकिन क्या यह सच है|
क्या ब्रह्मा विष्णु और महेश का कोई पिता नहीं है? वेदों में लिखा है कि जो जन्मा या प्रकट है वह ईश्वर नहीं हो सकता| ईश्वर अजन्मा अप्रकट और निराकार है| वास्तविक में त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश की कथा को भगवान शिव के भक्तों ने शिव को आधार बनाकर लिखा तो भगवान विष्णु के भक्तों ने भगवान विष्णु को आधार बनाकर ग्रंथो मैं ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब भगवान महादेव से जब पूछा गया कि आपके पिता कौन हैं| तो भगवान महादेव ने जगत गुरु ब्रह्मा का नाम लिया और जब पूछा गया कि ब्रह्मा के पिता कौन हैं तो उन्होंने भगवान विष्णु का नाम लिया और जब उनसे पूछा गया कि भगवान विष्णु के पिता कौन तो उन्होंने कहा कि मैं स्वयं| लेकिन शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म ही सत्य है वही परमेश्वर है|
जिस समय सृष्टि में अंधकार था| न जल न अग्नि और न वायु था तब केवल तत्सदब्रह्म ही थे| जिसे श्रुति में सत् कहा गया है| सत् अर्थात अविनाशी परमात्मा उस परब्रह्म काल ने कुछ समय के बाद द्वितीय होने की इच्छा प्रकट की और उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ| तब उस परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है| परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म और वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है| प्राचीन ग्रन्थ उन्हीं को ईश्वर मानता है| सदाशिव ने अपने शरीर से शक्ति की सृष्टि की जो उनके अपने अंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी| वह शक्ति अम्बिका कही गई शक्ति की देवी ने ही लक्ष्मी सावित्री और पार्वती के रूप में जन्म लिया और ब्रह्मा विष्णु और महेश से विवाह किया था| उस कालरूप सदाशिव की अर्धांगिनी दुर्गा है| काल रूपी सदाशिव ने शक्ति के साथ शिवलोक नामक क्षेत्र का निर्माण किया उस उत्तम क्षेत्र को आज काशी के नाम से जाना जाता हैं| जिसे मोक्ष का स्थान भी कहा गया है|
यहां कालरूपी ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा पति और पत्नी के रूप में निवास करते हैं| काशी पुरी को प्रलयकाल में भी शिव और शिवा ने अपने सान्निध्य से कभी मुक्त नहीं किया था इस आनंदरूप वन में रमण करते हुए एक समय शिव को यह इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए| जिस पर सृष्टि निर्माण का कार्यभार रखकर हम निर्वाण धारण करें ऐसा निश्चय करके शक्ति सहित परमेश्वर रूपी शिव ने अपने वामांग पर अमृत मल दिया| फिर वहां से एक पुरुष प्रकट हुआ| शिव ने उस पुरुष से संबोधित करते हुए कहा वत्स व्यापक होने के कारण तुम विष्णु के नाम से जाने जाओगे| इस प्रकार शिव पुराण के अनुसार विष्णु के माता और पिता कालरूपी सदाशिव और पराशक्ति दुर्गा हैं|
ब्रह्मा जी का जन्म.......
शिवपुराण के अनुसार भगवान ब्रह्माजी नारदजी से कहते हैं कि भगवान विष्णु को उत्पन्न करने के बाद ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके मुझ ब्रह्माजी को अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया और तुरंत ही मुझे भगवान विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया| उस कमल से पुत्र के रूप में मुझ हिरण्य गर्भ का जन्म हुआ| ब्रह्मा आगे कहते है मैंने उस कमल के सिवाय दूसरे किसी को जनक या पिता नहीं जाना| मैं कौन हूं कहां से आया हूं मेरा क्या कार्य है मैं किसका पुत्र होकर उत्पन्न हुआ हूं किसने इस समय मेरा निर्माण किया है| इस संशय में पड़ा हूं इस प्रकार त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और रुद्र इन देवताओं में गुण हैं और सदाशिव गुणातीत माने गए हैं|
इससे यह सिद्ध हुआ कि ब्रह्मा विष्णु और महेश के जन्मदाता कालरूपी सदाशिव और दुर्गा हैं। ये बातें अन्य पुराणों में घुमा-फिराकर लिखी गई हैं जिससे कि भ्रम की उत्पत्ति होती है। भ्रम को छोड़कर सभी पुराण और वेदों को पढ़ने की चेष्टा करें तो वास्तविक तथ्य समझ में आएगा। मनगढ़ंत लोकमान्यता के आधार पर अधिकतर हिन्दू सच को नहीं जानते हैं।
Competitive Exam Syllabus GK , Small Business Ideas,Low Investment Business Ideas, Kraft Board And Papers Manufacturer Mills ,जानिए EPF Member’s Form-19, फॉर्म-10C, फॉर्म-31, फॉर्म-10D कब भरा जाता है ,
विटामिनों के रासायनिक नाम ,पेट में गैस की समस्या , गर्मियों में अपने चहेरे काला होने से बचाये , Bel Patra JuiceHealth Benefits बेल की पत्तियों के काढ़े का सेवन गर्मियों में लाभप्रद ,करेला के फायदे |, लहसुन के फायदेप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये ,बालों को मजबूत बनाये,सर्दी जुखाम मिटाए , पेट में दर्द होने के प्रमुख कारण और आसान घरेलू उपाय ,चोट क घाव भरने के लिए ये देशी दवाई का उपयोग करे , दाद और खुजली की यह अचूक दवा जरूर देखिये , मुंह के छाले से परेशान हैं, तो अपनाएं ये घरेलू उपाय ,दाँत में दर्द होने के प्रमुख कारण और आसान घरेलू उपाय , पाचन से जुड़ी समस्याओं को जड़ से खत्म कर देता है? हैजा, दस्त,पेचिश,पीलियाएकउत्कृष्टहर्बलदवाई अमरूद के पत्तों के फायदे - मधुमेह ,ब्लड प्रेशर कंट्रोल ,पाचन तंत्र को दुरुस्त रखे .