Hindu Dhram kya hai

सनातन धर्म :- 

हिन्दू कोई धर्म धर्म नही है सनातन धर्म है उसी को आज हिन्दू बोला जाता है 

मूर्ति पूजा गलत नहीं है ,ये ध्यान केंद्रित करने में सहायक है

मूर्ति पूजा आध्यात्मिक प्राइमरी पाठशाला है ।सभी मूर्तिया हमारे पूर्वजों की हैं जो परम तत्व को स्पर्श कर पूर्णत्व को प्राप्त कर चुके थे। परमात्मा का कोई रूप नहीं है इसलिए उनकी मूर्ति बनाना असंभव है।भारत में सबसे ज्यादा मूर्ति है लेकिन भारत मूर्ति पूजक नहीं है ।जब व्यक्ति बड़ा होता है तो वह भ्रम में पड़ जाता है कि भगवान एक है या अनेक ।यह प्रश्न लेकर वह संतों के पास जाता है और जब सदगुरू के पास पास जाता है तो उसके सभी भ्रम दूर हो जाते हैं ।सद्गुरु मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाय ।परमात्मा एक है ।आराधना की एक निश्चित विधि है जो नियत कर्म कहा जाता है ।फिर बह एकान्त में मिलता है ।



मूर्ति पूजा ।

कोई गलत नही हैं । कई जन्मों के फल से प्राप्त होता हैं

भगवान प्राप्त करने के दो पहलू हैं

1 निर्गुण ब्रह्म । ( निराकार )

2 सतगुण ब्रम्ह ।। ( आकार , आक्रति परमेश्वर)

1 निर्गुण ब्रह्म , ईश्वर एक है जो निराकार हैं ।

अधिक जानकारी के लिए पढ़े।

2 सतगुण ब्रम्ह ।🕉️ मूर्ति पूजा करना । बिल्कल पाप नहीं है । बहुत पुण्य का कार्य है 🙏🙏 कई जन्मों के अच्छे कर्मों से ऐसे धर्म में जन्म मिलता है ।।

किसी भगवान की आकृति बना के रूप देके पूजा करना ।। ये भक्ति मार्ग भी बोल सकते है ✡️, सनातन धर्म बहुत प्रचलन है । वेदों में इसका प्रमाण नही मिलता परंतु मंत्रो द्वारा है🕉️ । पुराणों में जरूर मिलता है ।।

त्रेता युग में भी प्रमाण है । माता सीता ने गौरी माता की, राम भगवान ने शिव लिंग की पूजा कि थी ।

हमारे ऋषि🔱 , मुनि, साधु संत ने ध्यान केंद्र करने का एक मार्ग बनाया , जिससे भगवान को जल्दी प्राप्त किया जा सके ओर मोक्ष की प्राप्ति हो । ईश्वर या परमात्मा भक्ति 🛕, आस्था , ओर श्रद्धा से ही मिल सकते है ।

आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने का मुख्य मार्ग कुंडलिन जाग्रत हो , कुंडलीन जागृति के बारे में खुद जानकारी ले ।

कुडलिन जागृति में ध्यान के केंद्रित किया जाता है । जो मूर्ति पूजा के द्वारा आसान होता है । । इसे समाधि के अवस्था में जल्दी पहुंच सकते है ।। ओर भगवान तथा शक्ति प्राप्त कर सकते है ।

इसके आलावा , 🛕🛕सनातन धर्म के अनुसार , परमात्म का अंश भिन्न भिन्न रूप में अवतार हुआ है ओर समय समय पर भगवान ने स्वयं धर्म की रक्षा के लिए जन्म लिया । जिन्हे हम पूजा करते है। वे केवल मूर्ति नहीं है बल्कि हमारे परमात्मा का ऐसा रूप रखे थे । जैसे श्री कृष्ण भगवान, श्री राम, श्री गणेश, दुर्गा मां, भगवान शिव आदि ।




सनातन धर्म में मूर्ति पूजा बिल्कुल ठीक है और आगम प्रक्रिया के तहत मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और विधी से पूजा अर्चना की जाती है। मंदिरों में स्थापित मूर्तियों के बिना सनातन धर्म की परिकल्पना करना बेकार है। हमें अपने विश्वास को पूरे आदर से मानने की आजादी है इससे किसी हीन भावना से ग्रसित होने की जरूरी नहीं है।

हमें गर्व से कहना चाहिए कि हम देवी-देवताओं में भी विश्वास रखते हैं, हम वेदों , उपनिषदों, पुराणों में भी आस्था रखते हैं। हम मंदिर की घंटी, तीर्थ यात्रा, गौ, गंगा, धरती माता को भी मानते हैं, हम तुलसी को केवल पौधा ही नहीं मानते। हमारा धर्म इस्लाम व ईसाई से बिल्कुल अलग हैं, हमारी मान्याएं अलग हैं , हमारे विश्वास अलग हैं , हमारी संस्कृति व धर्म अलग है। प्रकृति में हर पौधा अलग है, हर फूल अलग है, हर जीव अलग है, हर इंसान भी अलग है उसके हाथ की रेखाएं भी, ऐेसे ही हम भी अलग हैं। इसमें कोई किसी से नफरत नहीं बस हम भिन्न हैं।/

'अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरुपा' अर्थात् ब्रह्म के दो स्वरूप हैं-एक है निर्गुण (निराकार) और दूसरा सगुण (साकार) । यह सृष्टि इन दोनों प्रकार के ब्रह्म से ही चल रही है । कोई भी वस्तु ऐसी नहीं जो निर्गुण न हो और कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं जो सगुण न हो।



सगुण भक्ति सरल व भावप्रधान है। वहां तो भगवान केवल भाव के भूखे हैं ।

देखि सुदामा की दीन दशा,
करुना करिके करुनानिधि रोये ।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं,
नैनन के जल सों पग धोये ।। (कवि नरोत्तम)

सगुण भक्ति में भक्त और भगवान के बीच परस्पर रस का आदान-प्रदान, भक्त की सेवा से भगवान को रस मिलता है और भगवान की लीला से भक्त प्रेमरस में डूबा रहता है ।

निर्गुण ब्रह्म की उपासना

निर्गुण ब्रह्म सारे ब्रह्माण्ड में उसी प्रकार व्याप्त है जैसे दूध में मक्खन; पर आंखों से दिखाई नहीं पड़ता। फिर भी ज्ञान मार्ग द्वारा या निर्गुण भक्ति द्वारा ब्रह्मज्ञान हो सकता है।

सूरदासजी ने निर्गुण ब्रह्म को 'गूंगे का मीठा फल' बताया है । जैसे एक गूंगा व्यक्ति मीठे फल को खाकर तृप्त तो हो जाता है किन्तु वह बता नहीं सकता कि उस फल का स्वाद कैसा था; उसी प्रकार कठिन साधना द्वारा मनुष्य निर्गुण ब्रह्म की अनुभूति तो कर लेता है किन्तु उसे शब्दों में बता नहीं सकता ।

  • ब्रह्म के साकार और निराकार दोनों ही रूपों में कोई अंतर नहीं है । श्रद्धा-विश्वास और पूर्ण शरणागति से सगुण और निर्गुण भक्ति-दोनों से भगवान की प्राप्ति हो सकती है । कुछ भी अलग अलग नहीं है, ना सांख्य-योग ना कर्म योग, ना भक्ति योग । सब एक ही तो है । भारत में इसीलिए अनेकांतवाद को स्वीकार किया गया -कोई एक मार्ग , एक मत पूर्ण रूप से सत्य का वर्णन नहीं कर सकता मगर संभव है कि सब मिलकर हमें सत्य से परिचित करा सके। ठीक उसी तरह यह भी माना गया कि हर व्यक्ति का स्वभाव अलग होता है इसीलिए कोई एक मार्ग सब के लिए उचित नहीं होता , व्यक्ति अपने स्वभाव और सोच से मार्ग को चुने तो बेहतर रहता है।
  • हिन्दू एकमात्र ऐसा धर्म है जो आपको अपना भगवान् चुनने कि स्वतंत्रता देता है , इज़ाज़त देता है कि आप अपनी पसंद से उस देव कि शक्ल सूरत बना ले । फिर न सिर्फ देव बल्कि आप अपनी पसंद का मार्ग भी चुन सकते है। चाहे सिर्फ नाम ले या मूर्ति पूजा करे। कई मार्ग है जिनमे ईश्वर में खो जाना ही लक्ष्य है , समर्पण ही ध्येय है । कई जिनमे ईश्वर सिर्फ एक पड़ाव है , मंज़िल कही उसके भी आगे है। फिर कुछ मार्ग जिनमे ईश्वर हो यह भी जरुरी नहीं है , आप ईश्वर के बिना भी यात्रा कर सकते है । हर मार्ग अपने आप में पूर्ण है , हर मार्ग आपको अपनी मंज़िल तक ले जाने में सक्षम है । कोई भी मार्ग व्यक्ति के स्वभाव के हिसाब से ही उचित होता है और इसीलिए लकीर के फ़क़ीर होने से कुछ हासिल नहीं होगा।
  • सगुन और निर्गुण उपासना का झगड़ा बहुत पुराना है, हर व्यक्ति अपने हिसाब से किसी एक उपासना पद्यति को उचित ठहराता है। पक्ष-विपक्ष में तर्क देता है , मगर भूल जाता है कि भगवान् खुद एक आस्था का विषय है, कोई विज्ञान कि अवधारणा नहीं और उपासना पद्यति तो सिर्फ एक रास्ता है जिसे व्यक्ति अपने स्वभाव के हिसाब से चुनता है। जहाँ तक सवाल है मूर्ति पूजा का तो आप कि इच्छा माने इस मार्ग को माने या न माने। मगर जैसा मैंने कहा ईश्वर खुद एक अवधारणा है , एक सोच है , तर्कों के जाल में फिट नहीं होता। इसीलिए उपासना पद्यति भी भावना और स्वभाव का मेल है , तर्कों का जाल नहीं।

ऐसा भी नहीं है कि निर्गुण उपासना वाले सारे व्यक्ति ब्रह्मलीन हो गए हो या सगुण उपासना से हर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त हुआ हो। हम सब किसी पूर्वाग्रह से एक साधना पद्यति को चुन लेते है और अपने अपने अर्ध्य सत्य कि ततुम्बी बजाते रहते है। सत्य यह है कि न आपने सत्य को जाना और न मैंने सत्य को देखा।

झगड़ा सत्य का नहीं , सिर्फ मेरी और तेरी सोच का है, मेरे और तेरे अहंकार का है।

वेद कहते हैं - तस्‍य प्रतिमा नास्ति। वह जो विराट प्रकृत्ति स्‍वरूप है उसकी प्रतिमा संभव नहीं। वेदों में भी मूर्तिपूजा नहीं है। पुराणों में मूर्तिपूजा के बारे में

  1. भक्ति भी एक मुख्य कारण है जिसका अपने इष्ट पे प्रेम है वो उसके जब तक साक्षात दर्शन नही कर लेता तब उस मूर्ति के सहारे के उसकी पूजा, अर्चना करता है उसी से उसकी भक्ति होती है । जैसे मीरा या रामकृष्ण परमहंस ये लोग शुरुवात में मूर्ति उपासना ही करते थे बाद में इन्हें दर्शन भी प्राप्त हुआ।
  2. मूर्ति पूजा करने का मतलब मूर्ति को ईश्वर मान ना नहीं अपितु उस मूर्ति में छुपे हुए ईश्वर के अंश को पूजना है,

    मूर्ति या तस्वीर हम अपने उन पूर्वजों की बनाते हैँ जो कभी इस धरा पर प्रकट हुए थे या हुए हैँ और उनको श्रद्धांजलि और आदर देने के लिए हम उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते हैँ,

    यह ठीक वैसे ही जैसे हमने अपने दादा परदादाओं को नहीं देखा लेकिन हम उनकी तस्वीर को देखकर उन्हें अपना पूर्वज मान लेते हैँ और श्राद्ध इत्यादि के माध्यम से उन्हें याद करते हैँ और आदर देते हैँ, लेकिन हम उन्हें ईश्वर नहीं मानते हैँ,

    सनातन धर्म में आस्था रखने वाले मूर्ति को केवल मन को ईश्वर के चरणों में एकाग्रचित करने के लिए ही मूर्ति पूजा को एहमियत नहीं देते अपितु मंदिरों में मूर्ति स्थापना से पहले उस मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा भी वैदिक मंतोच्चारण के माध्यम से की जाती है और उस मूर्ति में ईश्वर की उपस्थिति का विश्वास किया जाता है,

    मूर्ति पूजा किसी पत्थर की पूजा नहीं और न ही यह अपने आपको बहुत बड़ा भक्त साबित करने के लिए की जाती है अपितु अगर, अगर यह अपने आपको भक्त सावित करने के लिए ही होता तो आज दुर्गा, विष्णु, काली माँ, व्रम्हा इत्यादि की हज़ारों भुजाएं हो गयी होती, क्यूंकि मेरे जैसा भक्त दुर्गा माँ या भगवान विष्णु की 18 या 4 भुजाओं के बजाए अपने भगवान को और अपनी भक्ति को बड़ा दिखाने के लिए 18 के बजाए कई भुजाएं बढ़ा देता, लेकिन इन देवताओं या अवतारों की आज भी छवि रूप वैसा का वैसा ही है जैसे आज से हज़ारों साल पहले हुआ करता था,

    अगर आप को इसमें अंधविश्वास भी लगता है तो भी हमें अपने पूर्वजों को आदर देने और और हज़ारों सालों से बनी हुई चली आ रही परम्परा को मान देने के लिए ही इसका विरोध नहीं करना चाहिये, और अपने पूर्वजों को इज्जत  इसी प्रकार से देते रहना चाहिये,

    क्यूंकि मनुष्य पर 4 प्रकार के ऋणों में देव ऋण और पितृ ऋण भी शामिल हैँ,      

  3.                                  अपनी संस्कृति बचाना है आने वाली पीढ़ी तक तो जागो भारत  ।70% हिंदुओं को धर्म का कुछ भी नहीं पता ,।आज तेजी से केवल हिंदू धर्म परिवर्तन कर रहे है ।

  4. हर सनातन हिंदू  अपने बच्चो को अपने धर्म के बारे में पूरा ज्ञान जरूर दे । तभी आने वाली पीढ़ी अपने धर्म परिवर्तन नही करेगा । अन्यथा अंधविश्वास ओर ढोंग ही बोलेगा ।।

    कुछ  , कहते है कि हिंदू धर्म अंधविश्वास ओर ढोंग है। ओर धर्म परिर्वतन कर लेते है बहकावे ओर लालच में आके ।

    ऐसे लोगो 😭को कौन बताए की आप के माता पिता ने आप को सनातन धर्म ओर संस्कृति के बारे में बताया ही नही कुछ ।। इसलिए ढोंग बोल रहे हो ।।

    सनातन धर्म ओर संस्कृति शुद्ध रूप से विज्ञान ओर आयुर्वेदिक ज्ञान है 

      फिर से गुरुकुल शुरू हो 

    सब मिलो ओर सरकार से मांग उठाओ ।             

     पीपल क्यों पूजा जाता है पीपल का वृक्ष हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है. मुख्य रूप से इसको भगवान विष्णु का स्वरूप मानते हैं. इसके पत्तों, टहनियों यहाँ तक कि कोपलों में भी देवी देवताओं का वास माना जाता है. कहा जाता है कि पीपल के मूल में ब्रह्मा,मध्य में विष्णु और शीर्ष में शिव जी निवास करते हैं. धर्मशास्त्रों के अनुसार पीपल में पितरों का वास होने के साथ ही देवताओं का भी वास होता है। स्कंद पुराण के अनुसार पीपल की जड़ में श्री विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फल में सब देवताओं से युक्त भगवान का अच्युत निवास है। इसीलिए पीपल के वृक्ष का पूजन किया जाता है।

पीपल के पेड़ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है। लकड़ी यज्ञ में प्रयोग की जाती है।

लोगों का मानना है कि पीपल के वृक्ष में शनिदेव का वास होता है। इसलिए लोग कई बार पीपल के वृक्ष में जल देते हैं। पीपल में जल देने के पीछे एक मान्यता यह है कि ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। साथ ही आरोग्यता का वरदान भी मिलता है।

विटामिनों के रासायनिक नाम ,पेट में गैस की समस्या , गर्मियों में अपने चहेरे  काला होने से बचाये , Bel Patra JuiceHealth Benefits बेल की पत्तियों के काढ़े का सेवन गर्मियों में लाभप्रद ,करेला के फायदे |, लहसुन के फायदेप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये ,बालों को मजबूत बनाये,सर्दी जुखाम मिटाए , पेट में दर्द होने के प्रमुख कारण और आसान घरेलू उपाय ,चोट  घाव भरने के लिए ये देशी दवाई का उपयोग करे , दाद और खुजली की यह अचूक दवा जरूर देखिये , मुंह के छाले से परेशान हैंतो अपनाएं ये घरेलू उपाय  ,दाँत में दर्द होने के प्रमुख कारण और आसान घरेलू उपाय पाचन से जुड़ी समस्याओं को जड़ से खत्म कर देता हैहैजादस्त,पेचिश,पीलियाएकउत्कृष्टहर्बलदवाई अमरूद के पत्तों के फायदे - मधुमेह ,ब्लड प्रेशर कंट्रोल ,पाचन तंत्र को दुरुस् रखे .

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