कन्याकुमारी मंदिर की कहानी (Story of Kanyakumari Temple) -
दोस्तों आज हम कन्याकुमारी बारे में जानेगे की कैसे कन्याकुमारी पड़ा है। इसके पीछे भी बहुत ही रोचक कहानी है। ये भगवन शंकर और माँ पार्वती पे है। माता के नाम पे ही कन्याकुमारी।कन्याकुमारी दक्षिण भारत में स्थित है।कन्याकुमारी को केप कोमोरिन के नाम से भी जाना जाता है।कन्याकुमारी हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। यहां आप बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर के मिलन को देख सकते हैं। यहां के समुद्री तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है।यहां पर सूर्योदय से ज्यादा सूर्यास्त का दृश्य सुहावना होता है। यहां पर्यटक शांत वातावरण और खूबसूरती का दीदार करने के लिए आते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त : कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी है।
दोस्तों आज हम कन्याकुमारी बारे में जानेगे की कैसे कन्याकुमारी पड़ा है। इसके पीछे भी बहुत ही रोचक कहानी है। ये भगवन शंकर और माँ पार्वती पे है। माता के नाम पे ही कन्याकुमारी।कन्याकुमारी दक्षिण भारत में स्थित है।कन्याकुमारी को केप कोमोरिन के नाम से भी जाना जाता है।कन्याकुमारी हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। यहां आप बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर के मिलन को देख सकते हैं। यहां के समुद्री तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है।यहां पर सूर्योदय से ज्यादा सूर्यास्त का दृश्य सुहावना होता है। यहां पर्यटक शांत वातावरण और खूबसूरती का दीदार करने के लिए आते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त : कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी है।
कन्याकुमारी
दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यह मध्यकाल में विजयानगरम्
साम्राज्य का भी हिस्सा रहा है।
पौराणिक महत्व : -शिवपुराण में लिखी
एक बहुत ही प्रसिद्ध कथा के अनुसार वाणासुर नाम के एक असुर ने देवताओं को अपने कुकर्मों
से पीड़ित कर रखा था। सभी देवता वाणासुर से मुक्ति पाना चाहते थे, लेकिन कोई भी इसे
मार नहीं पा रहा था। क्योंकि इस असुर को भगवान शिव की ओर से वरदान था कि उसकी मृत्यु
केवल एक ‘कुंवारी कन्या’ के हाथों ही होगी।
यह वरदान उसे भगवान शिव की कड़ी तपस्या के बाद मिला था।
इसी राक्षस का वध
करने के लिए आदि शक्ति के एक अंश से एक पुत्री को जन्मा गया। इस पुत्री का जन्म उस
वक्त भारत पर राज कर रहे राजा के घर में हुआ। राजा के आठ पुत्र और एक यही पुत्री थी।
इस पुत्री का नाम रखा गया 'कन्या'।
प्राचीनकाल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को 8 पुत्री और 1 पुत्र था। भरत ने
अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का
हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी शिव की भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह
करना चाहती थीं। विवाह की तैयारियां होने लगीं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि वाणासुर
का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया।
कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाने लगा और वाणासुर के वध के बाद कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत
के इस स्थान को 'कन्याकुमारी' कहा जाने लगा।
मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं।
प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद
में कंकर बन गए। आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल
के आकार और रंग-रूप के कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।
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